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एक॑या च द॒शभि॑श्च स्वभूते॒ द्वाभ्या॑मि॒ष्टये॑ विꣳश॒ती च॑। ति॒सृभि॑श्च॒ वह॑से त्रि॒ꣳशता॑ च नि॒युद्भि॑र्वायवि॒ह ता वि मु॑ञ्च ॥३३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

एक॑या। च॒। द॒शभि॒रिति॑ द॒शऽभिः॑। च॒। स्व॒भू॒त॒ऽइति॑ स्वऽभूते। द्वाभ्या॑म्। इ॒ष्टये॑। वि॒ꣳश॒ती। च॒। ति॒सृभि॒रिति॑ ति॒सृऽभिः॑। च॒। वह॑से। त्रि॒ꣳशता॑। च॒। नि॒युद्भि॒रिति॑ नि॒युत्ऽभिः॑। वा॒यो॒ इति॑ वायो। इ॒ह। ता। वि। मु॒ञ्च॒ ॥३३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:33


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (स्वभूते) अपने ऐश्वर्य से शोभायमान (वायो) वायु के तुल्य अर्थात् जैसे पवन (इह) इस जगत् में सङ्गति के लिए (एकया) एक प्रकार की गति (च) और (दशभिः) दशविध गतियों (च) और (द्वाभ्याम्) विद्या और पुरुषार्थ से (इष्टये) विद्या की सङ्गति के लिए (विंशती) दो बीसी (च) और (तिसृभिः) तीन प्रकार की गतियों से (च) और (त्रिंशता) तीस (च) और (नियुद्भिः) निश्चित नियमों के साथ यज्ञ को प्राप्त होता, वैसे (वहसे) प्राप्त होते सो आप (ता) उन सब को (वि, मुञ्च) विशेष कर छोड़िये अर्थात् उन का उपदेश कीजिये ॥३३।
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे वायु इन्द्रिय प्राण और अनेक गतियों और पृथिव्यादि लोकों के साथ सब के इष्ट को सिद्ध करता है, वैसे विद्वान् भी सिद्ध करें ॥३३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(एकया) गत्या (च) (दशभिः) दशविधाभिर्गतिभिः (च) (स्वभूते) स्वकीयैश्वर्ये (द्वाभ्याम्) विद्यापुरुषार्थाभ्याम् (इष्टये) विद्यासङ्गतये (विंशती) चत्वारिंशत् (च) (तिसृभिः) (च) (वहसे) प्राप्नोषि (त्रिंशता) एतत्संख्याकैः (च) (नियुद्भिः) (वायो) (इह) (ता) तानि (वि, मुञ्च) विशेषेण त्यज ॥३३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्वभूते वायो ! यथा पवन इहेष्टये एकया च दशभिश्च द्वाभ्यामिष्टये विंशती च तिसृभिश्च त्रिंशता च नियुद्भिः सह यज्ञं वहति, तथा वहसे स त्वं ता वि मुञ्च ॥३३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा वायुरिन्द्रियैः प्राणैरनेकाभिर्गतिभिः पृथिव्यादिलोकैश्च सह सर्वस्येष्टं साध्नोति तथा विद्वांसोऽपि साध्नुयुः ॥३३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा वायू, इंद्रिये, प्राण व अनेक गतींना सिद्ध करतो, पृथ्वीवर सर्वांचे इष्ट करतो तसे विद्वानांनीही करावे.